डोडा विस्थापितों को नहीं मिल रहा इंसाफ
: Wed, 15 May
2013
जागरण संवाददाता, जम्मू : पिछले डेढ़ दशक से विस्थापन का दंश
झेल रहे डोडा विस्थापितों के लिए मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रही है। आतंकियों के
भय से बेघर हुए सैकड़ों डोडा विस्थापित परिवार जीवन-यापन के लिए लिए कड़ी मेहनत कर अपने
परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। दूसरी ओर सिर्फ 1600 रुपये की राहत राशि के लिए संघर्षरत परिवारों को अपने पैतृक गांव में राशनकार्ड
तक की सुविधा से भी हाथ धोना पड़ रहा है।
करीब ढाई सौ ऐसे परिवार हैं जिनकी फाइलों की सीबीआई जांच होने
के बाद राहत राशि के नाम पर फूटी कौड़ी तक नहीं मिली है, लेकिन पुराने डोडा, किश्तवाड़ और रामबन
जिलों से विस्थापित हुए परिवारों को अपने पैतृक गांवों से अपनी पहचान मिटती नजर आ रही
है। छापनारी कांड में गोलियों का शिकार हुए सोमराज का कहना है कि डोडा विस्थापितों
की व्यथा बढ़ती ही जा रही है। सरकार उन्हें विस्थापित का दर्जा नहीं देना चाहती है,
लेकिन आतंकियों के भय से ये लोग अपने घर वापस नहीं जा रहे हैं।
पिछले अठारह वर्षो से डोडा के कई जगहों से बेघर हुए विस्थापित आज भी किराये के मकानों
में गुजारा कर रहे हैं। सरकार ने जम्मू संभाग के विस्थापितों के लिए 1600 रुपये की राहत राशि की घोषणा की है, लेकिन उसे देने में भी सरकार आनाकानी कर रही है।
कभी अपनी बंदूक से आतंकियों से लोहा लेने वाले रामप्रसाद का कहना है कि उन्हें
राज्य व केंद्र सरकार की ओर से उस तरह की शाबाशी नहीं मिली, जिस तरह मिलनी चाहिए। उन्होंने दर्जनों आतंकियों का सफाया किया था, लेकिन सरकार से कोई इनाम मिलने की बजाय उन्हें अपना अधिकार पाने
के लिए दफ्तरों की खाक छाननी पड़ रही है। उनका कसूर इतना है कि वह जम्मू संभाग के ऐसे
क्षेत्र से जुडे़ हुए हैं, जहां आतंकियों का बोलबाला
था और उन्होंने उन आतंकियों को नेस्तनाबूद करने में अहम भूमिका निभाई थी।
डोडा माइग्रेंट कमेटी के प्रधान राकेश शर्मा का कहना है कि डोडा विस्थापित सरकार
की अनदेखी का शिकार हुए हैं। जांच-पड़ताल के नाम पर सैकड़ों परिवारों के साथ नाइंसाफी
हुई है। उन्होंने जेएंडके हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया,
लेकिन कहीं से भी इंसाफ मिलने की उम्मीद नहीं है।
Source: http://www.jagran.com/jammu-and-kashmir/jammu-10393010.
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