कश्मीर विस्थापितों की व्यथा : चाहते हैं घर वापसी, पर यहां कोई नहीं है अपना
10, Sep, 2013 25 साल पहले अपने घरों का त्याग करने वाले कश्मीरी पंडित समुदाय
के लाखों लोगों में से चाहे कुछेक कश्मीर वापस लौटने के इच्छुक नहीं होंगे,
मगर यह सच्चाई है कि आज भी अधिकतर भाग वापस लौटना चाहता है।
इन 25 सालों के निर्वासित जीवन यापन के बाद आज भी उन्हें अपने वतन
की याद तो सता ही रही है साथ ही रोजी-रोटी तथा अपने भविष्य के लिए कश्मीर ही ठोस हल
के रूप में दिख रहा है। लेकिन इस सपने के पूरा होने में सबसे बड़ा रोड़ा यही है कि कश्मीर
में अब उनका कोई अपना नहीं है।
इतना जरूर है कि इक्का दुक्का कश्मीरी पंडित परिवारों का कश्मीर
वापस लौटना भी जारी है। मगर उनमें से कुछेक कुछ ही दिनों या हफ्तों के बाद वापस इसलिए
लौट आए क्योंकि अगर आतंकवादी उन्हें अपने हमलों का निशाना बनाने से नहीं छोड़ते वहीं
कईयों को अपने 'लालची' पड़ौसियों के 'अत्याचारों' से तंग आकर भी भागना पड़ा है। अधिक दिन नहीं हुए कन्हैया लाल पंडित का परिवार उधमपुर
के एक शरणार्थी शिविर से कश्मीर वापस लौट गया। इन 25 सालों में वह रीलिफ कमीशनर के कार्यालय के चक्कर काटते-काटते थक गया था। वह कहता
था 'मात्र मुट्ठी भर मदद के लिए जितना कष्ट सहन करना पड़ता है उससे
अच्छा है वह कश्मीर वापस लौट जाए।' और उसने किया भी वैसा
ही। बडगाम के एक गांव में वह वापस लौट गया। वापसी पर स्वागत भी हुआ। स्वागत करने वाले
सरकारी अमले के नहीं थे बल्कि गांववासी ही थे। खुशी के साथ अभी एक पखवाड़ा ही बीता था
कि उसके कष्टदायक दिन आरंभ हो गए। उसे 'कष्ट'
देने वाले कोई और नहीं बल्कि उसी के वे पड़ौसी थे जिनके हवाले
वह अपनी जमीन जायदाद को कर चुका था। असल में 25 सालों से खेतों व उद्यानों की कमाई को खा रहे पड़ौसी अब उन्हें वापस लौटाने को तैयार
नहीं थे। फिर क्या था। कन्हैया लाल को वापस सिर पर पांव रख कर जम्मू लौटना पड़ा। उसकी
सम्पत्ति को हड़पने की खातिर पड़ौसयिों ने कथित तौर पर 'आतंकवादियों की मदद' भी ले ली।
Source: http://www.deshbandhu.co.
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